I don’t need a national language

I love my country I love my country men I love my country men’s love for their mother tongue I don’t need a national language I love it when my cab driver changes songs to my mother tongue I love it even when he keeps listening to songs in his own mother tongue I love … [Read more…]

Poem: मानवीय पीड़ा

किसी को घर में रहने का दुखकिसी को ना रहने के लिए घर होता हैमानवीय पीड़ा का भी आखिरआर्थिक स्तर होता है परदेस में तो हम भी थेदूसरा देश नहीं तो क्या प्रान्त थाअपने ना चाहे साथ थेपेट तो लेकिन शांत थाहम को घर पहुँचाने के लिएफिर क्यों कोई जहाज नहीं आयाहमारे घर जाने के … [Read more…]

Poem: प्यार का खर्च

निकलते तो सभी हैंप्यार की गुल्लक भरी ले कर एक गर्व के साथ एक ख़ुशी के साथ लगता है ये खज़ाना कभी भी ख़तम नहीं होगा पर ज़िन्दगी और पैसे की तरह ये जो प्यार है ना वो भी खर्च हो जाता है वो पहली लड़ाई वो पहला आरोप प्रत्यारोप वो माफ़ी न देने की … [Read more…]

Poem: मुझे गर्व है हिंदी पर

मुझे गर्व है हिंदी पर जो उर्दू को भी स्वीकार करती है और अंग्रेजी को भी कुछ बदल जाती है पर बहुत कुछ मिटता नहीं है कोई मिठास लाता है कोई नयी श्वास लाता है हिंदी भाषा में हर कोई एक नया आभास लाता है मुझे गर्व है हिंदी पर बिहार जाती है तो भोजपुरी … [Read more…]

Poem: हम सब एक हैं

राजनीती कुछ और नहीं बस रेखाएं हैं कुछ समय पर और कुछ ज़मीन पर एक तरह से देखो तो पहचान देने का माध्यम दूसरी तरह से देखो तो विभाजित करने का माध्यम समय पर बनी रेखा कभी अहंकार से भर देती है ये काम हमारे पूर्वजों ने किसी और से पहले किया या कभी श्रेष्ठता … [Read more…]

Poem: ये सियासत भी

यहाँ सब पे इलज़ाम-ए-कौम-ए-बेवफाई है ये सियासत भी हमें कहाँ ले कर आई है सालों की दोस्तियां सियासती राय से टूटी जाती हैं ये सियासत भी हमें कहाँ ले कर आई है सदियों से रहे साथ उन को पाकिस्तान भेज देंगे ये सियासत भी हमें कहाँ ले कर आई है जिस को कहते हो मेरा … [Read more…]

Poem: प्रयागराज

उत्तर प्रदेश में कानून का राज हो गया आखिर इलाहबाद अब प्रयागराज हो गया     सालों से ना हुआ वो विकास आज हो गया आखिर इलाहबाद अब प्रयागराज हो गया     गुंडों से भयमुक्त पूरा समाज हो गया आखिर इलाहबाद अब प्रयागराज हो गया     देखो जंगल में भी राम राज हो गया आखिर … [Read more…]

Poetry: जुनून और सुकून

जुनून और सुकून की ज़ंग बहुत अज़ीम है कभी चलते रहना भारी लगता है कभी ठहराव का बोझ बड़ा होता है चलते रहने में कई सवालात दिल को घेर लेते हैं कहाँ जा रहा हूँ कहाँ तक पहुँचा हूँ क्या यहीं आने के लिए निकला था और भी कई सवाल ना जवाब मिलता है कभी … [Read more…]

Poetry Recital at Lahe Lahe

कुछ मर गया है मुझ में इस लिए कविता लिखता हूँ कुछ लिखता हूँ अब बचे हुए खुद को ज़िंदा रखने के लिए यही सच है हर एक कवि के पीछे. कुछ दर्द के साए हैं जो बरस जाते हैं अनायास ही. कुछ इस बारिश से बिखर जाते हैं और कुछ इस बारिश से संवर … [Read more…]

Poem : सरहद

इक बार कभी इस सरहद पे कुछ ऐसा भी हो जाए तुम भी कुछ गीत सूनाओ हम भी कुछ गाने गायें   बहुत हो चुका खेल खून का अब थोड़ा संगीत करें तुम छेड़ो एक नुसरत की धुन हम भी रफ़ी के गीत कहें   माज़ी में तो खून है टपका तेरा भी और मेरा … [Read more…]