रात हो चली है कोई किताब पढ़ने दो मुझेदिन के ज़ख्मों का कुछ तो हिसाब करने दो मुझे घर के हर कोने से कोई जाला गिरा जाता हैअपनी ज़ख़्मों को कुछ बा नक़ाब करने दो मुझे रोशनी में छुपे रहते हैं अंधेरों में निकल आते हैंअब तो खुद से ही…
Poem : अरमानों की चादरें
बहुत हल्के से ओढ़ रखी हैंअरमानों की चादरेंथोड़ी भी हवा आती हैउड़ जाती हैं पुरज़ोर नहीं हैं ज़िंदगी के रास्तेबिखरी हुई पगडंडियां हैंकोई सख्ती से चलता हैमुड़ जाती हैं कारोबार-ए-ज़िंदगी हमाराकुछ ऐसा चल रहा हैकुछ समुंदर निकल गये हम सेकुछ नदियाँ जुड़ जाती हैं ना खुशियों की कोई ख्वाइशना गम…
Poem : कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं है मेरा यहाँकुछ भी नहीं ना रुखसत पे कोई आँसूना आने पे कोई गेसूना बाहों के कहीं घेरेना खिलते हुए चेहरे कुछ भी नहीं है मेरा यहाँकुछ भी नहीं ना जीने का सबब कोईना मरने की वजह कोईना सुबहो की कोई ख्वाइशना शामों का कोई अरमां कुछ…
Poem : डिस्पोज़ेबल रिश्ते
नये दिन हैंनयी दुनिया हैऔर रिश्ते भी ढल गये हैनये रंगों मेंसमय की गति के साथडिस्पोज़ेबल हो गये हैंऔर क्यूँ ना हो आख़िरकुछ वक़्त ही ऐसा हैसब लोग जल्दी में हैंकोई सुबह से शाम तकरिश्तों को बढ़ता देखना चाहता हैकोई एक पल में हीसब छोड़ देना चाहता हैआख़िर कितनी परेशानी…
Poem: Urdu
अदब की है ज़ुबान उर्दूमेरा तो है जहान उर्दू जज़्बात जितने भी हो उलझेकर देती है बयान उर्दू गुलज़ार की भी साहिर की भीहिंदू भी है है मुसलमान उर्दू कभी देवनागरी कभी अरबी मेंहर सफे को देती है जान उर्दू अवध की भी है और दिल्ली की भीअस्ल में है…
Poem : थक गया हूँ ज़िंदगी से
थक गया हूँ ज़िंदगी सेऔर तेरी बंदगी सेकुछ इश्क़ को आराम दूंकुछ और राहें थाम लूँ मुड़ से गये थे रास्तेवापस उन्हें देखूं ज़राखोलूं मैं क्या कमरा नयाटूटा हुआ सीलन भरा आवाज़ें जो घुल गयी थीज़िंदगी के शोर मेंगाँठि जो पड़ गयी थीजीवन प्रवाह की डोर में आज़ाद हो जाने…
Poem : मेरी खुशियों का पौधा
मेरी खुशियों का पौधाकभी बड़ा नहीं होताकुछ शाखें निकलती हैंकुछ हरे पत्ते भीकुछ आशायें भी उगती हैकुछ घर भी बन जाते हैंमगर फिर कोई झोंकाफिर कोई टुकड़ा धूप काउड़ा देता है जला देता हैकभी कभी जड़ से ही हिला देता हैऔर बिखरी हुई शाखों मेंफिर से एक बीज ढूंढता हूँ…
Poem : ज़िंदा रहने का अदब
बुझती आँखों की तड़पउठती नींदों की थकनसोच में डूबे हुएमेरे माथे की शिकनसाथ है मेरे भी कुछयादों के पोशीदा सबबढूँढते रहते हैं वोजाने क्या सुबहो और शबमाज़ी की आँधी कोईरात का चाँद कहींज़ख़्म की वादियों मेंदर्द का दरिया कहींहर रोज़ के वहीबुझते हुए सिलसिलेघटती हुई ज़िंदगीबढ़ते हुए शिकवे गिलेखाक में…
Poem : प्यार-को-प्यार-ही-रहने-दो
कोई परिभाषा से परेआशा प्रत्याशा से परेइक हृदय में ज्वाला बनक्षीण क्षीण जलता हुआभावनाओं के पवन सेजीता और मरता हुआसंदेह और विश्वास कीधाराओं से लड़ता हुआएक पल में अल्प हो केदूजे में बढ़ता हुआनाम क्या दूं तुझ को मैंजब खुद को ही समझा ना मैंप्राप्य और अप्राप्य कीदुविधा में उलझा…
Poem: तà¥à¤® आओगे
तà¥à¤® आओगे कà¥à¤›Â है मà¥à¤à¥‡ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ सा कà¥à¤› है मà¥à¤à¥‡ आà¤à¤¾à¤¸ सा कà¥à¤·à¤¿à¤¤à¤¿à¤œ पे जब लालिमा खिल उठेगी à¤à¥‚म के आग जल के अधरों को सà¥à¤¸à¥à¤¤ होगी चूम के सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के धूमिल  पà¥à¤°à¤·à¥à¤ ों से à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ले तà¥à¤® आओगे इक ठिठà¥à¤°à¤¤à¥€Â रात को ओस को ओढ़ कर विलà¥à¤ªà¥à¤¤ होती पग डांडियों पे…