मौत की रोटी

A poem dedicated to those innocent kids who died in Bihar.

मौत की रोटी बेचते हैं
खुले आम ज़हर के सौदागर
मासूम ज़िन्दगी की कीमत
आज यहाँ कुछ भी नहीं

एक और किस्सा हुआ
एक और खबर बनी
कुछ और ब्रेकिंग न्यूज़
कुछ और इंटेलेक्चुअल व्यूज

होंगे आरोप और प्रत्यारोप
कमेटियां बैठेंगी और
कुछ सवाल खड़े होंगे
वक़्त गुज़रता जाएगा
और भूल जाएगा ये सब
हमारा अल्प स्मृति समाज

कुछ ऐसा ही है
हमारा समाजी ताना बाना
कुछ अप्रासंगिक बातों का
बड़ा मुद्दा बना देते हैं
और कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे
बिखर जाते हैं ऐसे ही

लोग तो बहुत हैं हर तरफ
दोष देने के लिए
राजनीतिज्ञ बाबू प्रजातंत्र
लोभी व्यापारी सरकारी तंत्र
पर सब से बड़े दोषी हैं
मैं और आप
जो जागते है केवल तब
जब मौत हमारे आँगन मैं होती है
और तब तक यही होता रहेगा
मौत बेचेंगे खुले आम
ज़हर के सौदागर
कभी रोटी की शकल मैं
कभी कोई और रूप धर के
और चलता रहेगा
वही पुराना ढर्रा
मासूम ज़िन्दगी की कीमत
कुछ भी नहीं रहेगी
कुछ भी नहीं

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