एकाकी मन के विस्तृत पटल पे

एकाकी मन के विस्तृत पटल पे
स्मृति की रेखाएं इंगित हैं

कुछ इतनी सूक्ष्म
कि प्रतीत भी नहीं होंती
कुछ इतनी गहरी
कि नींव को भी
विधवंसित कर दें

एकाकी मन के विस्तृत पटल पे…
इन रेखाओं मैं
छुपे हैं
अनगिनत क्षण
प्रसन्नता के
उन्मुक्त उल्लास के
गहन पीड़ा के
टूटे हुए विश्वास के
कुछ ऐसे जो मुझे
निशब्द कर गए
कुछ ऐसे जो
बरस पड़े
आहट दिए बिना ही

एकाकी मन के विस्तृत पटल पे…
अध्यन किया है
इन का प्रचुर
परिपक्वता से
सुख और दुख़ का
लेखा जोखा
सुख मिलता है
बिसरे हुए
मार्गों से
जहाँ प्रत्याशा
परोक्ष न हो
दुख़ तो आ जाता है
अनायास ही
क्षुब्ध करने को
एकाकी मन के विस्तृत पटल पे…
As I grow a year older, I thought I should try something I have not done before and I tried writing a poem in pure Hindi.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *