कोई परिभाषा से परे
आशा प्रत्याशा से परे
इक हृदय में ज्वाला बन
क्षीण क्षीण जलता हुआ
भावनाओं के पवन से
जीता और मरता हुआ
संदेह और विश्वास की
धाराओं से लड़ता हुआ
एक पल में अल्प हो के
दूजे में बढ़ता हुआ
नाम क्या दूं तुझ को मैं
जब खुद को ही समझा ना मैं
प्राप्य और अप्राप्य की
दुविधा में उलझा हूँ मैं
इस घुटन को जलने दो
इस को कोई आराम ना दो
प्यार को प्यार ही रहने दो
कोई नाम ना दो
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