निकलते तो सभी हैं प्यार की गुल्लक भरी ले कर एक गर्व के साथ एक ख़ुशी के साथ लगता है ये खज़ाना कभी भी ख़तम नहीं होगा पर ज़िन्दगी और पैसे की तरह ये जो प्यार है ना वो भी खर्च हो जाता है वो पहली लड़ाई वो पहला आरोप प्रत्यारोप वो माफ़ी न देने की खुद को कसम जो आपस में दी हुई प्यार की कसम से भी कहीं ज़्यादा भारी होती है वो जो एक समझौता होता है अंदर कुछ टूटने के बाद भी बाहर से जुड़े हुए दिखने का दिखते तो सब ठीक ही सामाजिक बंधनों में ये जो प्यार है ना वो भी खर्च हो जाता है फिर आता है बहुत सारा दुसरे रिश्तों का हस्तक्षेप एक रिश्ता दुसरे रिश्ते के खिलाफ हो जाता है और पता ही नहीं लगता कब एक शर्तरहित रिश्ता सशर्त बन जाता है ये जो प्यार है ना वो भी खर्च हो जाता है फिर एक दिन वो भी आता है जब गुल्लक खाली होती है लगता है कुछ सिक्के प्यार के पहले डाल दिए होते या खर्च करते हुए थोड़ी कंजूसी करी होती पर ये ऐसा खर्च है जो अपने आप ही होता है और नए सिक्के डालने का हुनर सब को नहीं आता और तब बस यही बचता है ज़िन्दगी भर सोचने के लिए ये जो प्यार है ना वो कितनी जल्दी खर्च हो जाता है