इस पेड़ पे जो लटकी हैं,
वो लाशें नहीं हैं
खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ थीं वो किसी घर की
इज़à¥à¥›à¤¤ थी किसी के दर की
खेलती थी कà¤à¥€ शायद
इसी पेड़ के तले
छà¥à¤ªà¤¤à¥€ थी कà¤à¥€ शायद
इस पेड़ की ओट में
और शायद कà¤à¥€ इस पेड़ पे
चॠके खेल à¤à¥€ होगा
पर आज वो लटकी हैं
à¤à¤• बेज़à¥à¤¬à¤¾à¤¨ बà¥à¤¤ बन के
पेड़ ही अचà¥à¤›à¥‡ हैं
शायद इन इंसानों से
जीते जी à¤à¥€ छाà¤à¤µ देते हैं
और मरने के बाद à¤à¥€
मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ आग देते हैं
इस पेड़ पे जो लटकी हैं,
वो लाशें नहीं हैं
कà¥à¤› सवाल हैं वो
बहà¥à¤¤ ही तीखे
इस गरà¥à¤® सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ में
हम सब के लिये
जाति में बांटते हैं हम
जाने कà¥à¤¯à¥‚ठहर इंसान को
धरà¥à¤® से आंकते हैं हम
इंसान की पहचान को
नज़रें बदल जाती हैं अपनी
लिंग के आधार पर
रोती होगी इंसानियत à¤à¥€
इस घिनोने अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° पर
इस पेड़ पे जो लटकी हैं,
वो लाशें नहीं हैं
à¤à¤• धबà¥à¤¬à¤¾ हैं शरà¥à¤® का
हमारी नंगी अंतरातà¥à¤®à¤¾ पर
à¤à¤• धबà¥à¤¬à¤¾ है शरà¥à¤® का
à¤à¥‚ठे सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• गौरव पर
à¤à¤• धबà¥à¤¬à¤¾ है शरà¥à¤® का
कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• आज़ादी पर
à¤à¤• धबà¥à¤¬à¤¾ है शरà¥à¤® का
लोकतंतà¥à¤° के छलावे पर
सचà¥à¤šà¥€ अंतरातà¥à¤®à¤¾ तो वो है
जब कथनी और करनी मैं न à¤à¥‡à¤¦ हो
सचà¥à¤šà¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ तो वो है
जहाठनारी को वसà¥à¤¤à¥ न समà¤à¤¾ जाये
सचà¥à¤šà¥€ आज़ादी तो वो है
जब इंसान में इंसानियत हो
सचà¥à¤šà¤¾ लोकतंतà¥à¤° तो वो है
जहाठहर वà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¿ की इज़à¥à¥›à¤¤ हो
इस पेड़ पे जो लटकी हैं,
वो लाशें नहीं हैं
Apologies to people who find these pictures disturbing, but as a poet my duty is to put the naked truth in front of you.