
कà¤à¥€ बड़ा नहीं होता
कà¥à¤› शाखें निकलती हैं
कà¥à¤› हरे पतà¥à¤¤à¥‡ à¤à¥€
कà¥à¤› आशायें à¤à¥€ उगती है
कà¥à¤› घर à¤à¥€ बन जाते हैं
मगर फिर कोई à¤à¥‹à¤‚का
फिर कोई टà¥à¤•ड़ा धूप का
उड़ा देता है जला देता है
कà¤à¥€ कà¤à¥€ जड़ से ही हिला देता है
और बिखरी हà¥à¤ˆ शाखों में
फिर से à¤à¤• बीज ढूंढता हूठमैं
जिस बीज से उगेगा
फिर à¤à¤• पौधा
जो मà¥à¤ को à¤à¥€ मालूम है
पेड़ नहीं बनेगा
टूट जाà¤à¤—ा बिखर जाà¤à¤—ा
हर बार की तरह अलà¥à¤ª आयॠमें
पर कोई शकà¥à¤¤à¤¿ या कोई पागलपन
मà¥à¤ से फिर से कहता है
उन बीजों को बिखेर दो
फिर से किसी मिटà¥à¤Ÿà¥€ में
जब कि मà¥à¤ को à¤à¥€ ये मालूम है
मेरी खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का पौधा
कà¤à¥€ बड़ा नहीं होता