Poem: कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ कुछ भी नहीं

कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं
ना रुखसत पे कोई आँसू
ना आने पे कोई गेसू
ना बाहों के कहीं घेरे
ना खिलते हुए चेहरे
कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं
ना जीने का सबब कोई
ना मरने की वजह कोई
ना सुबहो की कोई ख्वाइश
ना शामों का कोई अरमां
कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं
ना रिश्ते ना कोई नाते
ना करता है कोई बातें
ना गमों में कोई शामिल
ना हुआ है कुछ भी हासिल
कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं
एक शब अंधेरी सी
तन्हाइयों का दरिया
हसरातों की लाशें
दोज़ख़् सी सियाही
बस इस के सिवा
कुछ भी नहीं है मेरा यहाँ
कुछ भी नहीं

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